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धारावाहिक प्रस्तुति (26 अप्रैल 2019), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
मोहनदास करमचंद गांधी

प्रथम खंड : 19. ‘इंडियन ओपीनियन’

मैं पाठकों के सामने सत्‍याग्रह की लड़ाई के बाहरी और भीतरी सभी साधन रखना चाहता हूँ, इसलिए 'इंडियन ओपीनियन' नामक जो साप्‍ताहिक आज भी दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित हो रहा है उसका परिचय कराना भी जरूरी है। दक्षिण अफ्रीका में सर्वप्रथम हिंदुस्‍तानी प्रेस खोलने का श्रेय श्री मदनजीत व्‍यावहारिक नामक एक गुजराती सज्‍जन को है। उस प्रेस को कुछ समय तक मुसीबतों के बीच चलाने के बाद उन्‍होंने एक अखबार निकालने का भी सोचा। इस संबंध में उन्‍होंने स्‍व. मनसुखलाल नाजर की और मेरी सलाह ली। अखबार डरबन से निकाला गया। श्री मनसुखलाल नाजर उसके अवैतनिक संपादक बने। अखबार में पहले से ही घाटा आने लगा। अंत में उसमें काम करनेवाले लोगों को साझेदार या साझेदार जैसे बनाकर और एक खेत खरीद कर उसमें उन सबको बसा कर वहाँ से यह अखबार निकालने का निश्‍चय किया गया। वह खेत डरबन से 13 मील दूर एक सुंदर पहाड़ी पर है। उसके निकट से निकट का रेलवे स्‍टेशन खेत से 3 मील दूर है और उसका नाम फिनिक्‍स है। अखबार का नाम शुरू से ही 'इंडियन ओपीनियन' रखा गया है। एक समय वह अँग्रेजी, गुजराती, तामिल और हिंदी में प्रकाशित होता था। तामिल और हिंदी का बोझ हर तरह से अधिक लगने के कारण, खेत पर रह सकें ऐसे तामिल और हिंदी लेखक न मिलने के कारण और इन दो भाषाओं के लेखों पर अंकुश न रह सकने के कारण ये दो विभाग बंद कर दिए गए और अँग्रेजी तथा गुजराती विभाग जारी रखे गए। सत्‍याग्रह की लड़ाई शुरू हुई तब इन्‍हीं दो भाषाओं में 'इंडियन ओपीनियन' निकलता था। खेत पर बसकर संस्‍था में काम करनेवाले लोगों में गुजराती, हिंदी भाषी (उत्तर भारतीय), तामिल और अँग्रेज सभी थे। श्री मनसुखलाल नाजर की असामयिक मृत्‍यु के बाद एक अँग्रेज मित्र हर्बर्ट किचन 'इंडियन ओपीनियन' के संपादक रहे। उसके बाद संपादक के पद पर श्री हेनरी पोलाक ने लंबे समय तक कार्य किया। मेरे और श्री पोलाक के जेल-निवास के दिनों में भले पादरी स्‍व. जोसफ डोक भी अखबार के संपादक रहे। इस अखबार के द्वारा कौम के लोगों को हर सप्‍ताह के संपूर्ण समाचारों से अच्‍छी तरह परिचित रखा जा सकता था। साप्‍ताहिक के अँग्रेजी विभाग द्वारा ऐसे हिंदुस्‍तानियों को सत्‍याग्रह की थोड़ी-बहुत तालीम मिलती थी, जो गुजराती नहीं जानते थे। और हिंदुस्‍तान, इंग्‍लैंड तथा दक्षिण अफ्रीका के अँग्रेजों के लिए तो 'इंडियन ओपीनियन' एक साप्‍ताहिक समाचार पत्र की गरज पूरी करता था। मेरा यह विश्‍वास है...

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कविताएँ
नरेंद्र जैन

समकालीन कविता के बहुत से कवियों की तुलना में नरेंद्र जैन के पास कविता का संस्कार और कविता का परिचय कहीं अधिक विस्तृत और व्यापक है। नरेंद्र जैन की कोई भी कविता उठाई जाय, उसकी समूची बनावट और संरचना के पीछे उनकी गंभीरता और संस्कृति से टकराए बिना नहीं रहा जा सकता। उन्होंने किसी क्लीशे या सरलीकृत ढर्रे से अपनी कविता को लगातार बचाया। दूसरी ओर उनकी कई कविताएँ ऐसी भी हैं जहाँ वर्गीय व्यवस्था और उसके शोषण दमन के विभिन्न रूपों की पहचान ही नहीं, उनके प्रति एक गहरा व्यंग्य किसी खेल या कौतुक की तरह सामने आता है। नरेंद्र जैन मजे-मजे में बिना दाँत मुट्ठी भींचे, कुछ वाक्यों या शब्दों की पुनरुक्तियों या फेर-बदल से एक तीखे व्यंग्य को पैदा कर देते हैं। उनकी कविता का संसार उनके विचारों की तरह ही सहज और बोधगम्य है। ऐसी सहजता जो कला की सबसे अनिवार्य लेकिन सबसे कठिन चुनौती होती है। - उदय प्रकाश

बातचीत
स्वयं प्रकाश
मैंने हमेशा मनुष्य की अच्छाई को खोजा है
(वरिष्ठ कथाकार स्वयं प्रकाश से युवा आलोचक पल्लव की बातचीत)

कहानियाँ
अमिता नीरव
कॉफी-मग
एक दिन
राग का अंतर्राग
ख्वाहिशों की पगडंडी
तुम... जो बहती नदी हो
कल, आज और कल

आलोचना
अवधेश मिश्र
दो संस्कृतियाँ : तनाव और स्वीकृति

विमर्श
राजीव रंजन गिरि
कविता में स्त्री

विशेष
रेणु सिंह
सरकारी योजनाएँ, विज्ञापन और जागरूकता

देशांतर - कहानियाँ
उड़ान - मो यान
छिपा हुआ मैं - मुराथान मुंगन
एक उचक्के का रोमांच - इतालो काल्विनो
कथा एक खास सुई की - इसाक बशेविस सिंगर
अप्रैल की एक सुखद सुबह सौ प्रतिशत संपूर्ण लड़की को देखने पर - हारुकी मुराकामी

संरक्षक
प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल
(कुलपति)

 संपादक
प्रो. अखिलेश कुमार दुबे
फोन - 9412977064
ई-मेल : akhileshdubey67@gmail.com

समन्वयक
अमित कुमार विश्वास
फोन - 09970244359
ई-मेल : amitbishwas2004@gmail.com

संपादकीय सहयोगी
मनोज कुमार पांडेय
फोन - 08275409685
ई-मेल : chanduksaath@gmail.com

तकनीकी सहायक
रविंद्र वानखडे
फोन - 09422905727
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विशेष तकनीकी सहयोग
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गिरीश चंद्र पांडेय
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ISSN 2394-6687

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